The Basic Principles Of shiv chalisa in hindi
The Basic Principles Of shiv chalisa in hindi
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जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥ भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!...
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
It can be believed that Expecting women profit significantly by chanting the Shiva Chalisa. The chanting of Shiva Chalisa aids to guard their fetus as well as helps in Secure delivery.
Whosoever gives incense, prasad and performs arti to Lord Shiva, with appreciate and devotion, enjoys product contentment and spiritual bliss in this globe and hereafter ascends for the abode of Lord Shiva. The poet prays that Lord Shiva taken out the struggling of all and grants them eternal bliss.
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
It is made up of forty verses (chalisa), created in the Hindi language. The chalisa is structured inside of a poetic format and is also widely recited by devotees as a means to praise and look for blessings from Lord Shiva.
अर्थ: हे नीलकंठ आपकी पूजा करके ही भगवान श्री रामचंद्र लंका को जीत कर उसे विभीषण को सौंपने में कामयाब हुए। इतना ही नहीं जब श्री राम मां शक्ति की पूजा कर रहे थे और सेवा में कमल अर्पण कर रहे थे, तो आपके ईशारे पर ही देवी ने उनकी परीक्षा लेते हुए एक कमल को छुपा लिया। अपनी पूजा को पूरा करने के लिए राजीवनयन भगवान राम shiv chalisa in hindi ने, कमल की जगह अपनी आंख से पूजा संपन्न करने की ठानी, तब आप प्रसन्न हुए और उन्हें इच्छित वर प्रदान किया।
So, we will undoubtedly choose out couple of minutes from our shiv chalisa lyricsl busy schedule and pray to Lord Shiva. The most significant spotlight of Shiva Chalisa is that it can be recited by the two youthful and old. It could be taken up by Adult males along with Women of all ages. Reciting Shiva Chalisa rarely will take jiffy. It could accomplished even in the houses.
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
ईश्वर ने मेरे भाग्य में क्या लिखा है - प्रेरक कहानी
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
लिङ्गाष्टकम्